मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है
चंबा के डलहौजी के रहने वाले दिव्यांग सुनील पार्थिक दिव्यांग समुदाय के लिए बन रहे हैं रोल मॉडल
आर्थिक रूप से कमजोर दिव्यांग सुनील पार्थिक का डलहौजी से विधानसभा शिमला तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा लेकिन सुनील पार्थिक ने मंजिल पर पहुंचने की ठान ली थी, मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा की हर दिव्यांग के सपने होते है आज वह अपने सपने कोई साकार करने के लिए कड़ी मशक्कत करके विधान सभा शिमला पहुंचे. सुनील पार्थिक अपनी पुस्तक को लिखने के लिए मुख्यमंत्री जयराम से आर्थिक मदद की गुहार लेकर इतने दूर से आये हैं. वह अपने पुस्तक के माध्यम से दिब्यांग समुदाय को उनके सपनो के प्रति जगाने का प्रयास कर रह हैं ताकि दिब्यांग लोग मानसिक तनाओ से बच सके.
सुनील पार्थिक पहले बहुत सारी किताबें लिख चुके हैं.
बाइट,, सुनील पार्थिक,,, दिव्यांग लेखक ||